Rajasthan History

सोनागढ़ तथा सोनारगढ़ दुर्ग (धान्वन दुर्ग) - जैसलमेर Sonagarh and Sonargarh Fort -Jaisalmer



सोनारगढ़ दुर्ग जैसलमेर जिले में  स्तिथ हैं । इसका निर्माण 1155 ई . में रावल जैसल भाटी ने करवाया था। उसके पुत्र व उतराधिकारी शालिवाहन द्वितीय ने जैसलमेर दुर्ग का अधिकांश निर्माण पूर्ण करवाया । यह दुर्ग त्रिकूटाकृति का है तथा इसकी ऊँचाई 250 फीट हैं। इस दुर्ग के चारों ओर विशाल मरूस्थल फैला हुआ है। इस कारण यह दुर्ग 'धान्वन दुर्ग (मरू दुर्ग) ' की  श्रेणी  में आता है। इसके बारे में यह कहावत प्रचलित है कि यहां पत्थर के पैर, लोहे का शरीर और काठ के घोड़े पर सवार होकर ही पहुंच सकता है। यह  गहरे पीले रंग के बड़े - बड़े पत्थरों से निर्मित है जो बिना चुने के एक के ऊपर एक पत्थर रखकर बनाया गया है जो इसके स्थापत्य की विशिष्टता है ! जब सुबह शाम की किरणे इस पर पड़ती है तो यह वाकई में सोने के समान चमकता है! दुर्ग तक पहुचने के लिए अक्षय पोल, सूरज पोल, गणेश पोल, हवा पोल को पार करना होता है !  दुर्ग में कई महल,मंदिर एवं आवासीय भवन बने हुए है! दुर्ग में  स्तिथ लक्ष्मीनारायण मंदिर दर्शनीय है! इसे 1437 ई. में महारावल वैरीसाल के शासन काल में बनवाया गया था! इस मंदिर में स्थापित लक्ष्मीनाथ की मूर्ति मेड़ता से लायी गयी थी! यहा 'ढ़ाई साके' हुए! राव लूणकरण के समय (1550 ई.)  में यहा अर्द्ध साका हुआ था ! यहा  केसरिया तो धारण किया लेकिन जौहर न  हो पाया था !दुर्ग के भीतर बने भव्य महलों में महारावल अखैसिंह द्वारा निर्मित सर्वोतम विलास (शीशमहल),मूलराज द्वितीय के बनवाये हुए रंगमहल और मोतीमहल भव्य जालियों और झरोखों तथा पुष्पलताओं के सजीव और सुंदर अलकरण के कारण दर्शनीय हैं! गज विलास और जवाहर विलास महल पत्थर के बारीक काम और जालियों की कटाई के लिए प्रसिद्ध हैं! बादल महल अपनी प्राकृतिक परिवेश के लिए उल्लेखनीय हैं! जैसल कुआं किले के भीतर पेयजल का प्राचीन स्रोत है!
जैसलमेर दुर्ग के भीतर बने प्राचीन एवं भव्य जैन मंदिर तो कलां के उत्कृष्ट नमूने हैं! इनमें पार्श्वनाथ, संभवनाथ और ऋषभदेव मंदिर अपने शिल्प के कारण आबु के दिलवाड़ा जैन मंदिरों से प्रतिस्पर्धा करते मालूम होते हैं! जैसलमेर दुर्ग की कदाचित सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसमे हस्तलिखित ग्रंथो का दुर्लभ भंडार है! इसमे अनेक ग्रंथ ताम्रपत्र पर लिखे है! हस्तलिखित ग्रंथो का सबसे बड़ा संग्रहजैन आचार्य जिनभद्रसूरी के नाम पर जिनभद्र सूरी ग्रंथ भंडार कहलाता है! वर्तमान में राजस्थान में दो दुर्ग ही ऐसे है जिनमे बड़ी सख्या में लोग निवास करते(लिविंग फोर्ट) है उनमे से एक चितौड़ का दुर्ग है तथा दूसरा जैसलमेर का दुर्ग है! दूर से देखने पर यहा किला पहाड़ी पर लंगर डाले एक जहाज का आभास कराता है! दुर्ग के चारों ओर घाघरानुमा परकोटा बना हुआ है, जिसे कमरकोट तथा पाड़ा कहा जाता है! इसे बनाने में चुने का प्रयोग नहीं किया गया हैं बल्कि कारीगरो ने बड़े- बड़े पीले पत्थरों को परस्पर जोड़कर खड़ा किया हैं! 99 बुर्जो वाला यह किला मरुभूमि का महत्वपूर्ण किला हैं!